भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता,
बाढ़ की कोई शक्ल नहीं होती।
भीड़ और बाढ़ दोनों का मंजर
अक्सर नजर आता है
उनके गुजरने के बाद
उनके प्रवाह में सब
सब ढह जाता है
खिलखिलाता उपवन
श्मशान बना जाता है
सब तरफ,उदासी का,
वीरानियों का अंजाम
नज़र आता है।
भीड़ और बाढ़ की स्थिति
एक ही सी होती है।
दोनों का कोई नाम नहीं,
किस लहर ने आघात किया,
इसका कोई साक्षी नहीं,
दोनों ले डुबते है।शहर, गांव को
मुखौटा लगाकर, भीड़ और बाढ़ का।
क्योंकि भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता,
बाढ़ की कोई शक्ल नहीं होती।।
राजेश्री गुप्ता
Sahi hai, ekdum badhiya, keep writing
ReplyDeleteThank you 😊
DeleteAbsolutely amazing poem
ReplyDeleteThank you 😊
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