चांद
ए चांद कितना अच्छा है तू।
करवा चौथ और ईद,
दोनों के लिए आता है।
सिखा सकता है तो सिखा उनको,
मजहब के नाम पर जो दुकानें चलाते हैं।
धर्म के नाम पर भाई-भाई को लड़ाते हैं।
बता उनको कि तेरी चांदनी,
सब पर बरसती है।
तेरी रोशनी,
हर एक तक पहुंचती है।
अमीर- गरीब का फर्क तो,
तूने किया ही नहीं कभी।
ए चांद,
फलक पर तू सजता है।
अमावस को छोड़,
हर रोज निकलता है।
सब तुझे रोज देखते हैं,
फिर क्यों नहीं समझते हैं।
ए चांद,
मेरा भी, साथी है तू।
मेरी खिड़की से ,
ताका करती हूं तुझे।
रोज तेरे रूप को,
आका करती हूं मैं।
कभी छोटा, कभी बड़ा
और कभी और बड़ा हो जाता है तू।
लेकिन, अपने हर रूप से,
लुभाता है तू।
तुझे चाहने वाले,
इस दुनिया में बहुत हैं।
तुझ पर गीत और ग़ज़ल,
गाने वाले भी बहुत हैं।
सिर्फ, तू जो कहना चाहता है
वह लोगों को नहीं समझता।
समझाना चाहता है,
तो समझा,
करवा चौथ और ईद,
दोनों का है तू।
और यह भी बता
कि इस पूरी कायनात में
मानवता ही एक जाति है।
इंसानियत ही एक जज्बा है।
मानवता ही एक जाति है।
इंसानियत ही एक जज्बा है।
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