यूनान, मिस्र, रोम सब, मिट गए जहां से।
बाकी अभी तलक है, नामोनिशान हमारा।
सच कहा है कवि ने कुछ तो बात है हममें, हमारे देश में और वह बात है, हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति, जिसका संवर्धन, हम अपने छात्रों के मार्फत कर रहे हैं और उनकी शक्ति को सकारात्मक दिशा देकर गतिशील कर रहे हैं।
किसी भी राष्ट्र का विद्यार्थी वर्ग उसकी सुकुमारता एवं यौवन का प्रतीक हुआ करता है। राष्ट्र -मन उसी के साथ घुटनों के बल रेंगा खेला- कूदा, मुस्कुराया और खिलखिलाया करता है।
राष्ट्रीय चेतना इन्हीं पर अपनी दृष्टि केंद्रित करके वर्तमान में जिया और भविष्य के सपने देखा करती है।
छात्र, समाज के उस स्तंभ की तरह होते हैं, जिस पर समाज का भव्य महल खड़ा होता है। समाज का यह वर्ग, असंतुष्ट होकर अनेक महान कार्यों को अंजाम दे सकता है। यह वर्ग अपनी शक्ति के बलबूते राष्ट्र को एक नई दिशा दे सकता है।
भारत में छात्र शक्ति का दुरुपयोग कर पाना एक बड़ी बात है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि छात्र शक्तियां नष्ट हो जाती है। बहुत से छात्रों को पढ़ लिख कर भी बेकारी झेलनी पड़ती है। ऐसे छात्र तब अपना ध्यान विनाशात्मक गतिविधियों पर केंद्रित कर अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने लगते हैं।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।
ये छात्र कभी किसी आतंक गिरोह में शामिल होकर बेकसूर नागरिकों की हत्या करते हैं, तो कभी आत्मघाती दस्ता बनकर दूसरों के साथ- साथ स्वयं को भी खत्म कर देते हैं।
कभी यह हिंसक ढंग से समाज सुधार का कार्य करने की चेष्टा करते हैं, जिससे अंततोगत्वा समाज को ही क्षति होती है। भटके हुए छात्र अपनी शक्ति का प्रयोग चुनाव के समय बूथ लूटने में करने लगते हैं तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है। ये छात्र अपनी शक्ति का प्रदर्शन पुलिस वालों को मारने, आतंक मचाने के रूप में कर राष्ट्र को कमजोर करते हैं।
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की अनदेखी कर हमारे बहुत से छात्र पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति की नकल कर रहे हैं। हमारे छात्रों में शारीरिक शक्ति की कमी नहीं है परंतु वह मानसिक दिवालियेपन का शिकार होकर अपनी ही जड़ों को काटते हुए दिखाई देते हैं।
छात्र-छात्राओं के जीवन में अश्लीलता का समावेश हो गया है। वे अनुशासन हीन हो गए हैं। इनमें नशा करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है जबकि बहुत से छात्रों को सुख-सुविधाओं की भरमार है।
छात्रों पर पारिवारिक नियंत्रण नहीं रह गया है इसलिए उनकी उद्दंडता और बढ़ गई है। हमारी छात्रशक्ति परीक्षाओं में नकल करने में यकीन रखती है। उन्हें भारतीय पर्व त्योहारों की अपेक्षा 'वैलेंटाइन डे' अधिक प्यारा लगता है।
हम छात्र शक्ति को देश के विकास में भागीदारी करने का अवसर देने में विफल हो रहे हैं। हमारी छात्र शक्ति कर्तव्य हीन होकर अपनी ही क्षुद्र गतिविधियों में कैद है। छात्र शक्ति को नियोजित करने की आवश्यकता दिनों दिन बढ़ती जा रही है।
यह विचारणीय विषय है कि हमारे छात्रों के समक्ष कौन-कौन से आदर्श है? यदि छात्रों का आदर्श यह है कि अधिकाधिक सुख-सुविधाओं के साधनों को किसी भी तरह से प्राप्त किया जाए तो फिर भगवान ही मालिक है किंतु वर्तमान का सच यही है कि छात्र कम से कम समय में अधिक से अधिक पाने की लालसा रखता है। उसे अपने जीवन में सब कुछ बहुत जल्दी प्राप्त करना होता है। कम समय में आसमान छूने की उसकी सोच उसे गलत कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।
एकल परिवार के कारण इन बच्चों पर ना तो दादा दादी का साया होता है ना ही परिवार के किसी अन्य सदस्य की देखरेख। माता- पिता दोनों के कार्य पर चले जाने के कारण बालक दिन भर घर में खुद को अकेला पाता है। यही कारण है कि वह टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल आदि की कैद में खुद को जकड़ा हुआ पाता है। इन सब का उसके कोमल मस्तिष्क पर इतना असर होता है कि या तो वह आक्रामक बनता है या असभ्य।
जहां उसे एक आदर्श नागरिक बनने की तालीम मिलनी चाहिए थी, वहां उसका बचपन हिंसा मारधाड़ गंदी अश्लील फिल्में देखने में व्यतीत होता है। बच्चा महात्मा गांधी को नहीं माइकल जैक्सन को पसंद करने लगता है। शिवाजी की कथाएं उसे रास नहीं आती। स्वतंत्रता सेनानी उसके आदर्श नहीं रह जाते बल्कि ओसामा बिन लादेन को वह अपना प्रेरणास्रोत मानने लगता है।
छात्र शक्ति का दुरुपयोग राजनीति में भी बखूबी हो रहा है। वर्तमान राजनीतिज्ञ अपने क्षुद्र स्वार्थ के लिए छात्र शक्ति को बहका कर उसे गलत रास्ता दिखा रहे हैं ।हिंसात्मक गतिविधियों के लिए छात्रों का प्रयोग आम हो गया है। प्रदर्शन करना, नारे लगाना, लूटपाट करना, लोगों को डराना आदि के लिए इन्हीं छात्रों का प्रयोग किया जाता है। उन्हें सब्जबाग दिखाकर उनके भविष्य को अंधकार में घसीटा जा रहा है।
हमारा देश प्रगति के रथ पर रथारुढ़ है। उसे और आगे ले जाने का कार्य इन्हीं छात्रों का है। यदि इनकी शक्ति को नियोजित किया जाए तो यकीनन हमें जीतने से कोई नहीं रोक सकता, हमें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता, हमारा देश फिर से सोने की चिड़िया बन सकता है।
देव देव है,दनुज-दनुज ही
किंतु दोनों ओर जा सकते हैं, मनुज ही।
राजेश्री गुप्ता
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