'योगी बनो पवित्र बनो'
भारत की धरती पर बड़े-बड़े ऋषि- मुनि, योगियों ने जन्म लिया है और हमें ज्ञान की ऐसी संपदा विरासत में दी है, जिसे अनंत काल तक हम न सिर्फ संजोकर रख सकते हैं अपितु उसका प्रयोग अपने दैनिक जीवन में करके अपने जीवन को न जाने कितने संकटों से मुक्ति भी दिला सकते हैं। योग, वह विद्या है, जिसका उपयोग आज सारे संसार में हो रहा है।
वर्तमान समय में कृषि, उद्योग, परिवहन, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में विज्ञान की प्रगति ने हमें उपभोग की वस्तुएं और सुविधाएं प्रदान की है जिससे भौतिक स्तर पर मानव जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है परंतु इस प्रगति ने हमें भीतर से खोखला कर दिया है। प्रकृति से बहुत अलग कर दिया है, संपूर्ण जीवन में कृत्रिमता आ गई है, यही कारण है आज सभी मानसिक एवं भावनात्मक तनाव से भरा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। नशीली दवाओं का शिकंजा महामारी के रूप में हम पर कसता जा रहा है। फल स्वरूप नैतिक पतन भी उतनी ही तेजी से हो रहा है। देश के बच्चे और बड़े सभी मानसिक तनाव के कारण अपनी क्षमता को नष्ट कर रहे हैं। विद्यार्थी पढ़ नहीं पाते, अशांत और चंचल रहने तथा कुंठाओं से ग्रस्त जीवन होने के कारण उनकी स्मरण शक्ति पर असर पड़ रहा है, इस तनाव से निजात पाने का सीधा उपाय है-योग।

"योग है स्वास्थ्य के लिए लाभकारी,
योग रोग मुक्त जीवन के लिए गुणकारी"
योग संयमित एवं निरंतर निष्ठा के साथ दीर्घकाल तक चलने वाली क्रिया है, जिससे आत्मा का परमात्मा से मेल हो जाता है । ईसा से लगभग 2000 वर्ष पूर्व पतंजलि मुनि ने विस्मृत प्रायः प्राचीन वेद मूलक विद्या को लोकानुग्रह की अभिलाषा से पुनरुद्धार किया। हमारा मन राग- द्वेष के कारण बहुत उद्वेलित रहता है अतः चित्त को शांत करने पर ही आत्मा अपने स्वयं के स्वरूप को पहचान पाती है, जिसे आत्म साक्षात्कार कहा जाता है।
पतंजलि मुनि ने चित्त की वृत्तियों को रोकना भी योग का स्वरूप बताया है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि ये योग के आठ अंग है।
समाज में समरसता बनाए रखने के लिए सत्य, अहिंसा, ब्रम्हचर्य, अस्तेय, अपरिग्रह का कड़ाई से पालन करने के लिए है यह।
व्यक्ति के जीवन को सजीव, समर्थ और परोपकारी बनाने के लिए तथा संतोष, तप, स्वास्थ्य एवं ईश्वर के गुणों को समाहित करने से संबंधित है नियम।
यम और नियम से बंद कर चलता हुआ साधक योग मार्ग से कभी विचलित नहीं होता। प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ कृति इस मनुष्य शरीर को योग द्वारा विकसित किया जा सकता है। मनुष्य परमात्मा का सर्वश्रेष्ठ पुत्र है अतः उसमें परमात्मा की सभी तेजोमय शक्तियां बीज रूपों में निहित है। आमतौर पर वही शक्तियां काम आती है, जिन्हें हम दैनिक जीवन में प्रयोग में लाते हैं। शेष प्रसुप्त स्थिति में तब तक प्रतीक्षा करती रहती है, जब तक कोई उन्हें यत्न पूर्वक जगाने की चेष्टा न करें। इन प्रसुप्त शक्तियों को योग द्वारा जगाकर मनुष्य परमात्मा के समान शक्तिशाली व आनंद स्वरूप बन सकता है।
प्राचीन समय से ही योग-साधना से अद्भुत शारीरिक क्षमता उत्पन्न की जाती रही है। हमारे पुराणों में भीम, दुर्योधन, कुंभकरण, हनुमान आदि के सुदृढ़ शरीर और वज्र समान काया के अनेक प्रसंग भरे पड़े हैं।
जिस व्यक्ति का मन स्वस्थ हो, वह शारीरिक कष्ट से सदैव दूर रहता है। मानसिक तनाव की स्थिति में वह व्यक्ति बात- बात में क्रोधित हो उठता है, थकावट महसूस करता है तथा उसके स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है।
योग में मानसिक तनाव दूर करने के सरल उपाय है श्वासन, योग निद्रा तथा प्राणायामो में नाड़ी शोधन,दीर्घ श्वास-प्रश्वास, शीतली, कपालभाति, भ्रामरी इत्यादि। योग द्वारा मानव चिंता रहित रहता है। सबसे अच्छी बात है अपनी आवश्यकताओं को सीमित कर जो भी उपलब्ध हो उसी पर संतोष करने का नजरिया बना लेना। ऐसी आनंदमयी स्थिति योग द्वारा ही संभव है।
अत:सुखमय जीवन के लिए योग करना जरूरी है तथा यह कार्य 10 से 15 मिनट हर रोज किया जा सकता है।
स्वयं को बदलो जग बदलेगा,
योग से सुखमय जीवन होगा।
योग एक सुखद एवं शांतिमय जीवन जीने की कला है, जिसके निरंतर अभ्यास से शरीर स्वस्थ तथा निरोगी रहता है, मन शांत रहता है। बुद्धि तीक्ष्ण होती है। योग से ही हमारे अंदर विनम्रता, उदारता, मानवता जैसे मानवीय सद्गुणों की उत्पत्ति होती है, जो एक अच्छे चरित्र निर्माण में सहायक होती है।
विद्वानों ने भी कहा है--"स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है।"
जनमानस में योग के प्रति चेतना जागृत करने के लिए तथा बृहद समाज को अवगत कराने के लिए जिला, प्रांतीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर योग शिविरों का आयोजन होता है। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने भी योग के गुणों को देखते हुए योग को अपनाने की सलाह दी है। २१जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया है। जिसमें ना केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी योग शिक्षा की उपयोगिता समझकर इसे अपनाने पर बल दिया गया है।
योग गुरु बाबा रामदेव जी के सफल प्रयास स्वरूप योग शिक्षा का प्रचार- प्रसार संपूर्ण विश्व भर में किया जा रहा है।
"योग है स्वास्थ्य के लिए क्रांति,
नियमित योग से जीवन में हो सुख शांति।"
योग जहां एक ओर हमें स्वस्थ तथा निरोगी बनाता है, वही दूसरी ओर उससे हमारे भीतर सात्विक आहार, सात्विक आचार- विचार, परस्पर प्रेम, अध्यात्म आदि गुणों का समावेश होता है। निरंतर योग साधना से सभी की अपने- अपने कर्म क्षेत्र में कार्यक्षमता बढ़ जाती है। योग बहुआयामी गुणों से युक्त होते हुए भी उसके प्रति समाज के युवा वर्ग की निष्ठा का अभाव खलता है। युवा वर्ग योग की महत्ता से अनभिज्ञ है। विद्वानों का कथन है कि किसी रोग की रोकथाम करना उसके उपचार से बहुत अच्छा है। अतः वर्तमान समय में युवा वर्ग को योग को अपनाकर जीवन की समूल व्याधि को नष्ट करना चाहिए।
"सुबह या शाम कभी भी कीजिए योग,
आपके जीवन में कभी ना आए रोग।"
हमें योग को अपनी दिनचर्या में जोड़कर उसे जीवन का अभिन्न अंग बनाना चाहिए। ताकि हम अपने जीवन को सुंदर, सफल, सुमधुर और स्वस्थ बना सके। इस प्रकार भारतीय योग के लोक कल्याण की भावना से ओतप्रोत महायज्ञ में हम सभी एक शांतिमय समाज की रचना करें जो अंततः लोक कल्याण में सहायक सिद्ध हो सके।
"स्वस्थ जीवन जीना जिंदगी की जमा पूंजी,
योग करना रोग मुक्त जीवन की कुंजी।"
आपके इस लेखन को शत-शत नमन। योग व्यायाम पर लिखी गई इसमें सभी बातें सत्य है और बहुत ही खूबसूरती से आपने इनको इस एक निबंध में साझा किया है। इसे लिखने के लिए और इस ज्ञान से न केवल मेरा बल्कि अन्य लोगों का भी मार्गदर्शन करने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया mam।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार।
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