यह शहरी जीवन है,
यांत्रिक गतिविधियां,
जहां तनिक भी विश्राम नहीं।
भीतर संघर्षों का कोलाहल,
बाहर अजीब सी शांति है।
भीतर वेदना प्रगाढ़,
बाहर स्मित मुस्कान है।
कुछ उखड़ा हुआ है,
कुछ टूटा हुआ है,
कुछ दरका हुआ है भीतर।
कुछ क्षण पूर्व था यहां,
विचारों का आतंक,
संघर्षों का कोलाहल,
मानसिक अशांति,
अब बिल्कुल सन्नाटा है।
मौन है, निस्तब्धता है,
संवेदनाओं का एहसास
बर्फ सा हो गया है।
मन तो केवल इस्पात है।
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