रविवार, 25 अक्तूबर 2020

दशहरा

                         दशहरा

दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दश - हर से हुई है। जिसका शाब्दिक अर्थ है 10 बुराइयों से छुटकारा पाना।
दशहरे का त्यौहार हमारे भारतवर्ष में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। विजय का प्रतीक दशहरा अपना एक खास महत्व रखता है।
दशहरे का त्यौहार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इसे आयुध पूजा या विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है।
दशहरा शक्ति की उपासना का पर्व है। 9 दिन देवी दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है। दुर्गा सप्तशती का घर-घर में पाठ होता है। मां देवी दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा इन 9 दिनों में की जाती है। हवन आदि के द्वारा मां देवी दुर्गा को प्रसन्न किया जाता है। कहते हैं दशहरे के दिन मां देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। इसीलिए दशहरे का त्यौहार बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसके अलावा पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इसी दिन श्री राम जी ने  राक्षस रावण का वध किया था। माता सीता को मुक्त कराया था। इसी कारण दशहरे का त्यौहार बहुत मान्यता रखता है। जगह-जगह इसी दिन रावण का पुतला जलाया जाता है। रावण के साथ- साथ मेघनाथ एवं कुंभकरण का पुतला भी जलाया जाता है।
शक्ति की उपासना का पर्व
दशहरा है धार्मिक त्योहार।
बंगाल में दुर्गा पूजा उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। जगह- जगह पंडालों में दुर्गा की बड़ी-बड़ी मूर्तियां स्थापित की जाती है। विधि विधान से उनका पूजन किया जाता है।
कई जगहों पर दशहरे के अवसर पर मेले भी लगते हैं। मेले में मां देवी दुर्गा के मंदिर के बाहर का वातावरण देखते ही बनता है। इस समय धार्मिक भावना एवं लोगों की आस्था चरम पर होती है।
दशहरे के समय वर्षा समाप्त हो चुकी होती है। नदियों में बहने वाला पानी अपनी गति से बहता है। कृषक लोगों के लिए भी यह समय धान आदि को सहेज कर रखने का होता है।
इस समय कई लोग अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं। वाहन की पूजा करना भी श्रेयस्कर माना जाता है। घरों के बाहर फूलों से तथा आम के पत्तों या अशोक के पत्तों से तोरण बनाकर लगाया जाता है। इस समय घर के बाहर धान का तोरण बनाकर भी लगाया जाता है। कहते हैं इससे घर में हमेशा धनधान्य की समृद्धि होती रहती है।
दशहरे के दिन कई लोग नवीन वाहन, घर या नई चीजें खरीदते हैं। दशहरे का दिन नवीन सौदा करने का दिन होता है। इसे विजय स्वरूप देखा जाता है अतः यह मान्यता है कि इस दिन किया जाने वाला हर कार्य जय देता है।
वास्तव में दशहरा प्रतीक है-
बुराई पर अच्छाई का
असत्य पर सत्य का
नाश पर जय का
अशुभ पर शुभता का
अंधकार पर प्रकाश का
आवश्यकता है हमारे भीतर जो काम, क्रोध, मोह, ईर्ष्या, लालच, मत्सर आदि अनेकों असत भावनाओं का त्याग करने की। जब नकारात्मक भावनाओं को समाप्त किया जाएगा, तब भीतर का रावण अपने आप ही समाप्त हो जाएगा।
अपने भीतर के रावण को जलाएं,
आओ हम दशहरा मनाएं।

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