बुधवार, 4 नवंबर 2020

श्रम का महत्व

                        श्रम का महत्व
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा,
जो जस करहिं तो तस फल चाखा।
यह संसार वास्तव में एक कर्मभूमि है। भगवान कृष्ण ने भी भगवत गीता में 'कर्मण्येवाधिकारस्ते' कहकर कर्म करने का संदेश दिया है।
प्रकृति भी हमें कर्म करने की प्रेरणा देती है। धरती,सूरज, तारे, नक्षत्र सभी निरंतर गतिशील है। पवन निरंतर बहती है। नदिया सतत प्रवाहित होती रहती है।
प्रकृति में प्रत्येक तत्व को जीवन के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ता है। नन्हीं सी चींटी भी परिश्रम करके भोजन का भंडार जमा कर लेती है। शेर के मुख में भी पशु स्वयं प्रवेश नहीं कर पाते, उसे परिश्रम करके अपना शिकार ढूंढना पड़ता है।
श्रम से ही जीवन की गाड़ी चलती है। किसान के श्रम से ही सब का पेट भरता है। मजदूरों के श्रम से ही कल - कारखाने चलते हैं। चालकों के श्रम से ही वाहन चलते हैं। अस्पतालों में डॉक्टर और नर्सों का परिश्रम ही मरीजों को नया जीवन देता है। विद्यार्थी भी श्रम करके ही विद्या और योग्यता प्राप्त करते हैं।  श्रम में लीन रहकर ही वैज्ञानिक नए-नए आविष्कार करते हैं।
श्रम के बल पर ही विज्ञान ने मनुष्य को चांद पर पहुंचाया है। सभ्यता और संस्कृति का विकास श्रम के बल पर ही संभव हुआ है। अमेरिका, रूस,जापान जैसे देश अपने परिश्रम के कारण ही विश्व में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर सके हैं।
वाल्मीकि, वेदव्यास, कालिदास, पाणिनी आदि भी बौद्धिक श्रम से ही महान ग्रंथकार बन सके।पंडित जवाहरलाल नेहरू, श्री लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी जैसे कई नेता अपने श्रम के कारण ही देश के प्रधानमंत्री बन सके। आइंस्टाइन ने श्रम किया और वे विश्व के सबसे महान वैज्ञानिक बन गए। किसी ने सच ही कहा है - "बिना मेहनत के सिर्फ झाड़ियां ही उगती है। "
कल्पना से ही सब कार्य सिद्ध नहीं हो जाते। उसके लिए हमें श्रम करना पड़ता है।अत: श्रम का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। श्रम से ही हमें धन और यश की प्राप्ति होती है। श्रम से ही शारीरिक, मानसिक और आत्मिक विकास होता है। दिन रात मेहनत करने वाले व्यक्ति के स्वास्थ्य और सौंदर्य की वृद्धि होती है।वह निरोगी होकर दीर्घायु को प्राप्त करता है। परिश्रमी व्यक्ति अपने कर्म में लीन रहकर शांति अनुभव करता है। उसमें आत्म संतोष, आत्मवश्वास और आत्मनिर्भरता के गुणों का विकास होता है। जिससे हीनता की भावना समाप्त हो जाती है और वह आत्म गौरव अनुभव करता है।
हर 2 मिनट की शोहरत के पीछे आठ-दस घंटे की कड़ी मेहनत होती है।
धन जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। वह धन भी शारीरिक एवं बौद्धिक श्रम से ही प्राप्त किया जा सकता है।
मनुष्य अपने भाग्य का विधाता स्वयं है। परिश्रम के बल पर ही वह महान से महान लक्ष्य को प्राप्त करके महानता के पथ पर अग्रसर होता चला जाता है। आलसी व कर्म हीन व्यक्ति भाग्य के सहारे बैठा देव- देव पुकारा करता है।
सकल पदारथ है जग माही,
कर्म हीन नर पावत नाही
यह दुख की बात है कि हमारी वर्तमान शिक्षा नीति हमें श्रम से दूर ले जा रही है। आज का युवा वर्ग कम से कम श्रम करके अधिक से अधिक धन कमाना चाहता है। कई बार इसके लिए वह गलत रास्ते भी अख्तियार कर लेता है। जो सचमुच ही हमारे लिए चिंता का विषय है। आज सभी को यह समझने की जरूरत है कि परिश्रम वह चाबी है ,जो किस्मत के दरवाजे खोल देती है। इसलिए परिश्रम करने कीी आवश्यकता है।
परिश्रम वह पारस मणि है, जिसके स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है।
जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता पूरे जन्म के श्रम द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। इससे कम मूल्य पर इसे खरीदा नहीं जा सकता। जीवन में सफलता के फूल श्रम के पौधे पर ही खिलते हैं।
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।
                                           राजेश्री गुप्ता

  

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