शनिवार, 1 मई 2021

बहार आएगी

बहार आएगी,

ए सखी, बहार आएगी।

काली, कुपित निशा,

एक दिन तो ढल जाएगी।

रवि का आगमन तो

अटल सत्य है।

फिर भय, पीड़ा, और उलझन से

क्यों त्रस्त है तू ?

पतझड़ जीवन का हिस्सा है,

जीवन नहीं।

वसंत को तो आना है,

प्रकृति को हंसाना है।

चहुं ओर खुशियां फैलाना है।

फिर शोक, संतृप्त, और दुखी

क्यों है तू ?


माना काले बादल छाए हैं,

तिमिर तांडव मचाए हैं।

पर उजाला तो विजीत होगा

आज नहीं तो कल होगा।

फिर सब्र, शांत और धैर्य के बंधन में

क्यों न है तू ?

सच मान

प्रकृति को जान

प्रकृति हरदम बदलती है,

हर क्षण कहां एक सी रहती है।

यह घोर निराशा, त्रासदी और तकलीफों

का चक्र भी बदलेगा।

सच सखी,

बहार आएगी।

फूल खिलेंगे, उपवन महकेंगे

आशा और विश्वास को मत खोना

यही तुम्हें संबल देंगे

बहारों से तुम्हें मिलने देंगे

बहारों से तुम्हें मिलने देंगे।

                         राजेश्री गुप्ता

 

 

 

 

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