व्यक्ति
जीवन जीता है हर कोई,
कोई घुट-घुट कर ,
तो कोई छुप छुप कर,
कोई विद्रोह करता है ,
तो कोई आग्रह विनीत,
पर उसके जीने का यह संघर्ष है संचित,
स्वाभिमानी है वह, अभिमानी है वह ,
जिसने अपनी जिंदगी से लड़ना सीखा,
अपने पैरों को मंजिल की तरफ बढ़ाकर ,
जिसने अपनी जिंदगी में बढ़ना सीखा,
नित आगे बढ़कर जिसने,
कांटों पर चलना सीखा,
जीवन यह क्षणिक है ,
यह सोचकर,
जिसने जिंदगी में हंसना सीखा,
जिसने अपनी जिंदगी में हंसना सीखा।।
राजेश्री गुप्ता
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