जंक फूड
जंक फूड
मैं जंक फूड बोल रहा हूं। सुना है पाठशाला में मुझ पर बंदी
उचित है या अनुचित इस पर चर्चा होने वाली है।
सच कहूं तो मैं घबरा गया हूं क्योंकि हेल्थ इज वेल्थ और
स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाए तो पाठशाला में मुझ पर बंदी जरूर होगी। आपको पता
है महर्षि चरक ने भी कहा है धर्मार्थ काम मोक्षणाम, आरोग्य मूल उत्तमम् । अर्थात धर्म,
अर्थ, काम, मोक्ष इन सब का मूल आधार स्वास्थ्य ही है।
मुझे खाने से केवल
फैट बढ़ता है। ना ही मुझ में प्रोटीन है, नाही विटामिन । कोलेस्ट्रोल और फैट की
वजह से मुझे खाना ठीक नहीं है।
मेरा अधिक सेवन तनाव, थकान, मोटापा, डायबिटीज जैसी कई रोगों
को आमंत्रण देता है। स्वास्थ्य रक्षा हेतु आहार का विशेष महत्व है। मुझे खाने से
आलस से बढ़ता है और आलस्य शरीर का सबसे बड़ा शत्रु है। मुझे तो 100% लगता है कि
पाठशाला में मुझ पर बंदी जरूर होगी।
बच्चे मुझे कितने चाव से खाते हैं। मेरा पिज़्ज़ा, बर्गर और
नूडल्स वाला रूप तो बच्चों को बहुत अधिक पसंद है। जब बच्चे ललचाई नजरों से मेरी ओर
देखते हैं तो मुझे बहुत अच्छा लगता है।
मेरे पिज़्ज़ा और बर्गर के पागलपन ने तो पिज़्ज़ा हट, मैकडॉनल्ड,
डोमिनोज जैसी कंपनियों को करोड़ों का फायदा करवाया है।
मेरी चाहत दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। बच्चे क्या ?
युवा क्या ? और बुढ़े क्या ? सभी मुझे खाने को उतावले होते हैं मेरा शौक ही उनको
पागल बना रहा है।
मुझे सिर्फ खाने
की दृष्टि से ही नहीं देखा जाता या मैं केवल पेट भरने का ही साधन नहीं हूं ।बल्कि
मुझे तो लोग अब स्टेटस सिंबोल के रूप में भी देखने लगे हैं। कुछ समझे आप ? नहीं ! अरे
बाबा, आजकल समाज में ऐसा भी प्रचलन हो गया है कि केवल जो पैसे वाले हैं वही मुझे
खरीद कर खा सकते हैं। मुझे खाना गरीब के बस का नहीं। वे तो केवल ललचाई नजरों से
मेरी ओर देखते रहते हैं।
मुझे कितना गर्व होता है जब मैं किसी सुपरस्टार की तरह
सम्मानित होता हूं। मेनू कार्ड में लोग मुझ पर सबसे पहले उंगली रखकर कहते हैं,
उन्हें पिज्जा, बर्गर या नूडल्स खाना है । पर अब मेरा यह अभिमान रावण के अभिमान की
तरह चूर-चूर होने वाला है।
सभी को मेरी
असलियत जो पता चल गई है। यह स्वास्थ्य विभाग वालों ने तो मेरा जीना ही दूभर कर
दिया है।
फिर पाठशाला तो शिक्षा का केंद्र है। संपूर्ण
ज्ञान की बातें यहीं पर सिखाई और बताई जाती है ।यहां पर मुझ पर रोक जरूर लगेगी।
मुझे तो लगता है कि यह पाठशाला वाले लोग सोचते
हैं कि बच्चों को यदि बचपन से ही यह बताया गया कि मुझे खाना उनकी सेहत खराब कर
देगा, उनका मन पढ़ाई में नहीं लगेगा। वे एकाग्रचित्त
होकर अध्ययन नहीं कर सकेंगे। तो निश्चित रूप से सभी बच्चे इसे समझेंगे और मुझे
नहीं खाएंगे। पर कुछ मनचले और स्वाद के शौकीन बच्चों के लिए यदि पाठशाला में ही
मुझ पर रोक लगा दी गई तो वह कम से कम पाठशाला की अवधि तक तो मेरा सेवन नहीं करेंगे।
अंग्रेजी में भी कहां गया है कि साउंड माइंड इन
अ साउंड बॉडी अर्थात स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। स्वस्थ व्यक्ति
के चित्त में उत्तम विचार आते हैं तथा अस्वस्थ व्यक्ति धीरे-धीरे आलसी, दुखी, हठी,
क्रोधी तथा अविवेकी होता जाता है।
शरीर माद्य खलु धर्म साधनम् अर्थात स्वस्थ शरीर
द्वारा ही अपने समस्त धर्मों का पालन संभव है। निरोगी काया सबसे बड़ा सुख है। और
मुझे खाने से तो -----------
नहीं, नहीं मेरे खाने पर रोक नहीं लगनी चाहिए।
मैं तो आने वाली पूरी पीढ़ी को बर्बाद कर देना चाहता हूं ।मेरा यह धीमा जहर, मेरी
लत का प्रयोग कर, मैं पूर्ण देश को नष्ट करने की फिराक में हूं । मैं तो उस
आतंकवादी की तरह ही हूं ।जो अपना आतंक फैला कर सब कुछ तहस-नहस कर देता है।
नहीं-नहीं पाठशाला में मुझ पर रोक उचित नहीं है। ऐसे में मैं अपने मंसूबों पर कभी
खरा नहीं उतर पाऊंगा। मैं जानता हूं, छात्र जीवन में स्वास्थ्य रक्षा हेतु समस्त
नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए। सभी छात्र अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त कर
देश की उन्नति में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। पाठशाला में मुझ पर बंदी उचित है। पर,
मैं ऐसा होने नहीं दूंगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें