मंगलवार, 14 मार्च 2023

मैं

 मैं

मैं
मैं कौन हूं ?
यह मैं ना जानू ।
यह मैं क्या है ?
यह मैं ना जानू ।
जीवन का पल, कहां खत्म होगा।
 उसमें मैं होगा,
 या ना होगा ।
मैं है या नहीं है ,
यह मुझमें है ,
या उसमें है।
लेकिन यह मैं है बड़ा अभिमानी,
 इसके पीछे पड़ कर दुनिया है हारी ,
रावण और कंस है इसकी दास्तां,
 कवियों ने कही है इसकी खलिस्ता।
 हर शहर पर ,हर डगर पर,
 यह मैं है ।
हर इंसान में दुबका हुआ,
 किसी कोने में सिकुड़ा हुआ,
 कहीं कहीं पर फैला हुआ,
 यह मैं है ।
इसकी दास्तां हर इक मुखाफित है।
 रात हो या दिन हो ,
हर पल का चित है,
 ऐसा यह मैं है ,
ऐसा यह मैं है।
ऐसा यह मैं है।।
              राजेश्री गुप्ता


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