जिंदगी
जिंदगी ने हमें जीना सिखाया,
जीते हुए भी लड़ना सिखाया।
वक्त का मरहम, भरता है जख्म।
ताज़ा हो तो, दुखता है जख्म।
इन सभी बातों का तकाजा,
वास्तविक रूप में हमें बताया,
जिंदगी ने हमें जीना सिखाया।
जानती हूं मैं, जिंदगी को करीब से
पल- पल की हंसी,पल-पल के ग़म में।
तराशा है मैंने, एक जौहरी सा
जिंदगी का कोई मुकाम मैंने खोया भी नहीं
खोकर भी मैंने कुछ पाया नहीं
ये हैं जिंदगी की कड़वी सच्चाई
मरकर ही यहां, हर एक ने जन्नत है पायी।
जीवन में संघर्ष है, यहां पर सभी के
कोई हंस कर झेलता है, तो कोई रोकर
मगर जीवन की सार्थकता है,
तो सिर्फ दुख ढोकर।
ऐसा नहीं कि कभी,सुख ना आए
पर दुख से मन क्यों कतराता है,
बार- बार सुख पाने को ये मन
क्यों ललचा जाता है ?
लेकिन जीवन की यही सत्यता,
हर मनुष्य की यही विवशता,
कभी- कभी जी करता है,
जीवन से उठ जाने से,
मगर मौत के करीब आते ही,
वह प्यार करने लगता है जीवन से।
वह प्यार करने लगता है जीवन से।
राजेश्री गुप्ता बनिया