सोमवार, 17 अगस्त 2020

प्रेम

प्रेम

प्रेम दो वर्णों का लफ्ज है।
इसमें छिपा बड़ा रोचक मर्म है।
प्रेम से प्रेम को पाया जा सकता है।
प्रेम से दुनिया को अपना बनाया जा सकता है।
प्रेम ने मेरी दुनिया ही बदल दी,
जब से प्रेम हुआ मुझे,
सब मुश्किल ही हल कर दी।
हिंदू ,मुस्लिम, सिख , ईसाई
सभी प्यारे लगते हैं।
ना कोई बड़ा, ना कोई छोटा,
ना कोई अमीर ,ना कोई गरीब लगता है।
बस प्यार से देखो तो हर इंसान,
करीब का कोई अपना लगता है।
प्रेम सिखलाता है हमको,
नफरत को भुलाकर व्यक्ति को जीतना।
प्रेम सिखलाता है हमको,
सभी को अपना बनाकर रखना।
ये प्रेम शब्द कितना ताकतवर है।
काश, ये मेरे देश का हर बंदा जान जाए।
तो दूरियों का यह समंदर,
हर एक को कितना,
नजदीक नजर आए।
जाति- पांति की दीवार पाटकर,
हम सब केवल,
प्रेममय हो जाए।
राजेश्री गुप्ता

प्लास्टिक

प्लास्टिक

हमारे दैनिक जीवन में हम प्लास्टिक की काफी सारी वस्तुओं का उपयोग करते हैं। हमारी सुबह से लेकर हमारी रात तक के सारे क्रियाकलापों में हम प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं। कभी यह नहीं सोचा था कि प्लास्टिक का इस्तेमाल इतना घातक हो जाएगा।
कई साल पहले जब बहुत बारिश हुई और जगह-जगह पानी भर गया। उस पानी का बढ़ता स्तर किसी बाढ़ से कम नहीं था। यह बाढ़ बढ़ती ही जा रही थी। बाद में पता चला प्लास्टिक की वजह से पानी जाने का स्त्रोत बंद हो गया है, जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई।
मतलब प्लास्टिक की वजह से बाढ़ का प्रकोप पूरे शहर को झेलना पड़ा।
प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है जिसे अमर होने का वरदान प्राप्त हो गया है। मानो जब विष्णु जी देवों के अमर होने के लिए समुद्र मंथन के बाद जो अमृत बांट रहे थे वह प्लास्टिक को मिल गया हो। इसीलिए तो उसे समाप्त नहीं किया जा सकता। वजन में हल्का, कभी जमुना लगने वाला, कीमत भी कम ऐसी वस्तु कोई क्यों न ले?
प्लास्टिक है धीमा जहर,
प्रतिदिन पृथ्वी को मार रहा,
 फैलता जा रहा है प्रकृति में,
 आसमान से समुद्र  तक ,
सभी को बर्बाद कर रहा।
प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है जिसके कारण जल,मृदा, और वायु के प्रदूषण होते हैं। यह मानव जीवन के लिए भी हानिकारक है। यह ऐसा जानलेवा पदार्थ है जो प्रकृति को जड़ से हटाने की क्षमता रखता है।
इसका उपयोग बहुत सुलभ है। हमारे दैनिक जीवन में बड़ी सरलता से इसका उपयोग सभी कर रहे हैं। कम खर्च में, काम हो रहा है, तो अच्छा है। बचत तो हो रही है। पर यह आज की बचत कल पर कितनी नुकसानदायक है यह हम नहीं जानते।
कुछ लोग अपना सारा कूड़ा इन्हीं प्लास्टिक की थैलियों में भर कर सकते हैं उनके लिए कूड़ा फेंकना कितना आसान हो गया है। बारिश में हम सभी प्लास्टिक को सिर पर लगाकर बौछारों से सिर को बचाते हैं। प्लास्टिक की पन्नियों से किताबों कॉपियों को भी सुरक्षा देने का काम करते हैं।
पर कभी सोचा नहीं कि यह प्लास्टिक का उपयोग इतना घातक सिद्ध होगा। हम लोग अपने ही हाथों अपनी धरती को नष्ट कर रहे हैं।
सहूलियत को कम करो,
प्लास्टिक का उपयोग बंद करो।
यह नारा कई बार हमने सुना है पर समझते कुछ भी नहीं है।
कहते हैं अमेरिका लगभग 380 टन का प्लास्टिक निर्माण करता है। ऐसे ही प्लास्टिक का निर्माण होता रहा तो अपने आज के फायदे के लिए हम आने वाली पीढ़ी को केवल जहर ही दे रहे हैं।
प्लास्टिक से सिर्फ पर्यावरण ही नहीं पशु पक्षियों को भी खतरा है। अभी कल ही तो सुना कि एक गाय ने रोटी के साथ बंधी प्लास्टिक की थैली भी खाली। बेचारे मुख जानवर प्लास्टिक को खाकर तरह-तरह की बीमारियों को न्योता देते हैं। कुछ तो मर भी जाते हैं। मैं ऐसा सोचती हूं कि यदि गाय बकरियां ऐसे मर जाएंगी तो हमें दूध कहां से मिलेगा।
समुद्र और महासागरों में डाली गई प्लास्टिक की बोतलें, थैलियां आदि पानी को जहरीला बनाती हैं। मछलियां एवं कई जलचर प्राणी पानी के प्रदूषित होने के कारण मर जाते हैं।
वह दिन दूर नहीं जब इसके कारण कई प्रजातियां विलुप्त होती दिखाई देंगी।
पशु- पक्षियों पर गहरा संकट,
मछलियां तड़प कर मर रही,
समुद्र ,नदियां ,तालाबों पर,
प्लास्टिक रूपी गंदगी तैर रही।
प्लास्टिक जमीन की उर्वरा शक्ति को नष्ट करता है। यदि कपड़े या लकड़ी को जमीन में गाड़ दें तो वह नष्ट हो जाता है ।पर प्लास्टिक नहीं। वह तो कई साल बाद भी वैसा के वैसा ही मिलता है। इसका कोई अंत नहीं है। प्लास्टिक में फेनोमल, मिथेनॉल जैसे भिन्न-भिन्न तत्व मिलाए गए हैं। प्लास्टिक में आमतौर पर उच्च आणविक भार होता है जिसका अर्थ है कि प्रत्येक अनु परमाणुओं को वह साथ में बांधे रखता है। प्लास्टिक को रीसायकल नहीं किया जा सकता। तभी तो प्लास्टिक स्वयं कहता है
चीर के जमीन को, मैं प्रदूषण बोता हूं,
मैं प्लास्टिक हूं, मैं जीवन छीन लेता हूं।
प्लास्टिक को जलाने से इसमें से जहरीले पदार्थ निकलते हैं। प्लास्टिक से कैंसर होता है इसलिए तो प्लास्टिक में गर्म व्यंजन नहीं डालना चाहिए या गर्म पेय भी नहीं पीना चाहिए।
प्लास्टिक के प्रदूषण को कम करने के लिए हमें इसका उपयोग बंद करना होगा। प्लास्टिक की जगह स्टील या अन्य दूसरे विकल्पों को इस्तेमाल में लाना होगा। बाजार जाते समय जूट की या कपड़े की थैली का इस्तेमाल किया जा सकता है। प्लास्टिक का इस्तेमाल ना करके हम प्लास्टिक प्रदूषण को काफी हद तक कम कर सकते हैं।
सरकार भी जागरूकता फैलाकर, प्लास्टिक के उत्पादन पर नियंत्रण लगाकर, प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाकर प्लास्टिक के प्रदूषण को कम कर सकती है।
आइए हम सभी मिलकर संकल्प लें ,
प्लास्टिक का उपयोग बंद करें।


शनिवार, 15 अगस्त 2020

स्वतंत्रता दिवस

स्वतंत्रता दिवस

तम से पर्दा छटा, रवि की रश्मियों ने संपूर्ण चेतना को प्रफुल्लित कर दिया। गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए भारत को बंधहीन कर दिया। तो ऐसा दिन भारत के इतिहास में अमर क्यों ना हो?
एक लंबे संघर्ष के बाद गुलामी की लौह श्रृंखलाओं से स्वतंत्र होकर आज हम स्वतंत्र भारत में स्वतंत्र सांसे ले रहे हैं। भारत में प्रगति और विकास की राह पर कई मील के पत्थर तोड़े हैं। अपना संविधान बनाना, तटस्थ विदेशी नीति बनाकर उस पर डटे रहना। शिक्षा, ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी, उद्योग- धंधे ,कल- कारखाने सभी का स्वतंत्र भारत में असीम विस्तार हुआ है।
क्या हुआ गर मर गए,
अपने वतन के वास्ते,
बुलबुले भी तो मरती हैं,
अपने चमन के वास्ते।
देश प्रगति कर रहा है, आगे बढ़ रहा है किंतु संकट बार-बार पैरों में बेड़िया पहनाने आ ही जाते हैं ऐसे में जरूरी है कि हमारे देश को बचाने के लिए हम सभी  एक हो जाए। आज राष्ट्र कुछ जयचंदो की वजह से गर्त में डूबता जा रहा है। ये जयचंद सांप्रदायिक वैमनस्यता बढ़ाकर स्वार्थ के अहम में धर्म की दुकानें चला रहे हैं। वोट बैंक के लिए निरीह, मासूम जनता को स्वर्ग का हवाला देकर गुमराह कर रहे हैं। विध्वंसकता, कट्टरता की नींव पर अपने सपनों का महल खड़ा कर रहे हैं जिसकी दीवारें इंसानी खून में रंगी हो।
लेकिन हमें यह याद कर लेना होगा कि ऐसे महल बहुत जल्द ही खंडहर में तब्दील हो जाया करते हैं।


आतंकवाद किसी का दोस्त नहीं होता। इसका कोई मजहब नहीं होता। वह सिर्फ इंसानियत का दुश्मन होता है और इंसानियत तो हर मजहब, हर धर्म में होती है। अतः आज जरूरी है कि हम विदेशी राष्ट्रों से भी कुछ सीख ले।
देश में गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही जा रही है, जिसका मूल कारण है,अशिक्षा।
देश को पूर्ण साक्षर बनाने की आवश्यकता है। सिर्फ विद्यार्थियों को परीक्षा प्रणाली से बांधने की बजाए क्यों ना हम शिक्षा के साथ उद्योग धंधों को बढ़ावा देने की बात पर जोर दें। जिससे विद्यार्थी न केवल साक्षर होगा बल्कि वह आत्मनिर्भर व स्वावलंबी भी होगा।
संदेश नहीं मैं यहां स्वर्ग का लाया,
इस पृथ्वी को ही स्वर्ग बनाने आया।


अतः आज का दिन हमें यही संदेश देता है कि हममें सच्चा प्रेम हो, त्याग हो, दया हो, सहानुभूति हो और हो कर्तव्य की भावना। आज का दिन ज्ञान की पावन ज्योति जगाने के व्रत लेने का है। स्वतंत्रता देवी के स्वागत में जगमगाते दीपक ओं के प्रकाश में अपने ह्रदय के अंधकार को धोकर भारत के कण-कण में कल्याण एवं शांति की हिलोर उठा देने का है जिससे सभी भारतवासी यथार्थ सुख का अनुभव करें। तभी नेहरू और गांधी जी का स्वप्न चरितार्थ होगा। वसुधैव कुटुंबकम हमारा जो धेय है वह पूर्ण होगा।
जो भरा नहीं है भावों से,
बहती जिसमें रसधार नहीं,
वह हृदय नहीं, वह पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
राजेश्री गुप्ता

शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

श्री कृष्ण लीला

श्री कृष्ण लीला

बड़ा नटखट है रे, कृष्ण कन्हैया,
का करे यशोदा मैया।
नटखट, शरारती, माखन- चोर,रास -रसैया आदि ऐसे अनेकों नाम कृष्ण को याद करते ही हमारे जहन में उतर जाते हैं। मुरली बजैया कान्हा की बाल लीलाओं का वर्णन सूरदास ने बड़े ही मनोहारी ढंग से किया है।
मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो येे पद हो या मैया मोहे दाऊ बहुत खिझायो ये पद हो।
हर जगह कान्हा की बाल लीलाओं का वर्णन सजीव रूप में चित्रित मिलता है।
श्री कृष्ण ने देवकी और वसुदेव की आठवीं संतान के रूप में जन्म लिया। उनके जन्म लेने के समय कंस ने वासुदेव और देवकी को कारागृह में बंद किया था। श्री कृष्ण के जन्म लेते ही कंस के सारे पहरेदार सो गए। कारागृह के दरवाजे खुल गए। वसुदेव ने कृष्ण को एक टोकरी में रखकर नंद के घर ले गए। रास्ते में खूब बरसात हो रही थी। यमुना का पानी ऊपर बढ़ता ही जा रहा था मानो यमुना भी श्री कृष्ण का दर्शन करने को व्याकुल हो रही थी। यह कृष्ण का ही चमत्कार था कि उनके पैर का स्पर्श होते ही यमुना का पानी कम हो गया। वसुदेव ने कृष्ण को सही सलामत नंद के घर गोकुल में छोड़ दिया और वापस कारागृह में लौट आए।
यहां पर जैसे ही नंद की कन्या को अपना काल मानकर कंस ने मारना चाहा वह हाथ से छूटकर आसमान में लुप्त हो गई। योग माया के लुप्त होते ही आकाशवाणी हुई की कंस को मारने वाला गोकुल में पैदा हो चुका है। कंस को यह पता चलते ही कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए एक के बाद एक साजिश रचनी शुरू कर दी।
पूतना नामक राक्षसिन को कंस ने कृष्ण को मारने के लिए भेजा। पूतना ने एक सुंदर स्त्री का रूप धरा और वह श्रीकृष्ण से खेलने के बहाने उसके घर गई। पूतना के स्तन में विष था। उसने जैसे ही कृष्ण को स्तनपान कराया। वैसे ही पूतना के प्राण छूट गए। कृष्ण ने खेल ही खेल में पूतना के प्राण हर लिए।
अपने मित्रों के संग गेंद से खेलते वक्त गेंद यमुना नदी में चली गई। वहां कालिया नाग ने डेरा जमा रखा था। कृष्ण पानी में कूदे और कालिया नाग को परास्त कर उसके फन के ऊपर बैठकर गेंद लेकर ऊपर आए।
यहां कंस ने भी हार नहीं मानी। वह एक के बाद दूसरे को कृष्ण का वध करने के लिए भेज ही देता था। कृष्ण उन असुरों को मारकर उनका उद्धार कर देते।
अघासुर, बकासुर ,तृणावत और न जाने कितने राक्षसों का वध कर कृष्ण ने उनका उद्धार किया। धरती को पापियों से मुक्त कर दिया।
यहीं पर कृष्ण की बाल लीलाओं का अंत नहीं होता। माखन चुराना, गैया चराना, रास रचाना, मुरली बजाना आदि अनेक लीलाओं के द्वारा कान्हा ने गोकुल के लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। आज संपूर्ण जगत हरे रामा हरे कृष्णा की माला जप रहा है।
उनकी एक लीला जो बहुत प्रसिद्ध है वह है उनका मिट्टी खाना। एक बार यशोदा मां ने कृष्ण को मिट्टी खाने पर उन्हें मुंह खोलने को कहा। मुंह खोलने पर मां को उसमें संपूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन हुए। कहते हैं वह देखकर मां अचेत होकर गिर पड़ी।
इसी प्रकार श्री कृष्ण ने एक बार इंद्र के कोपित हो जाने पर गोवर्धन पर्वत को एक उंगली पर उठाकर संपूर्ण ग्राम वासियों की रक्षा की थी।
गोकुल से दूध दही कंस की नगरी मथुरा में जाता था। श्रीकृष्ण को यह सही नहीं लगता था। वे सोचते यही दूध, दही खाकर यहां के लोग हृष्ठ- पुष्ट रहे इसलिए वे गोपीकाओं की नजरे चुराकर उनके घर से दूध दही उड़ाते। जिससे गोकुल का दूध, दही वहां के लोग ही इस्तेमाल कर सके।
हरि अनंत हरि कथा अनंता
श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का अंत नहीं किया जा सकता। मनोहर ,सकल जगत का ताप हरने वाला, विश्व का सृष्टा केवल कृष्ण हीं हो सकता है।
ऐसे श्रीकृष्ण को मेरा शत-शत नमन।
       राजेश्री गुप्ता

गुरुवार, 6 अगस्त 2020

शहरी जीवन

शहरी जीवन
चंदन है इस देश की माटी,
तपोभूमि सब ग्राम है।
कहते हैं-भारत गांवों में निवास करता है। गांव इस देश की रीढ़ की हड्डी है और देश की खुशहाली हमारे गांवों की मुस्कुराहट पर निर्भर है। बेशक यह बात शत- प्रतिशत सच है, परंतु फिर भी गांव के लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। वे अपने गांव छोड़कर शहरों के आकर्षण की ओर खींचें जा रहे हैं।
हां ! हां ! भारत दुर्दशा न देखी जाए।
गांवों की शुद्ध आबोहवा शहरी लोगों को सदैव आकर्षित करती रहती है क्योंकि शहरों में बस, ट्रक, कार, दुपहियों और तिपहियों की इतनी भरमार है कि यहां का वायुमंडल अत्यधिक प्रदूषित हो गया है। शहरों में वायु प्रदूषण के अलावा ध्वनि प्रदूषण भी अत्यधिक है। इसके अतिरिक्त जल प्रदूषण भी है। गंदा पानी पीने के कारण शहर के अधिकांश लोग जल जनित बीमारियों जैसे बुखार, हैजा, दस्त, उल्टी आदि से हमेशा त्रस्त रहते हैं। ध्वनि प्रदूषण से शहरों में अधिकांश लोग बहरे हो गए हैं या कम सुनने लगे हैं और वायु प्रदूषण से लोगों को श्वास संबंधी बीमारियां हो गई हैं। यह सभी बीमारियां इन शहरों की ही देन है। फिर भी शहर में रहने का अपना आकर्षण बना हुआ है।
आज का शहर विचित्र, नवीन
धड़कता है हर पल,
चाहे रात हो या दिन।
शहरी जीवन प्रदूषण से बेहाल है, इसके बावजूद यहां की चमक दमक लोगों को अपनी ओर खींच रही है। यहां जीवन उपयोगी हर वस्तु सहज उपलब्ध हो जाती है। इसके अतिरिक्त शहरों में रोजगार के अवसर अधिक है इसलिए शहरों का अपना अलग ही आकर्षण है। हालांकि यहां पर लोग गांव की करो प्रेम और मेलजोल से नहीं रहते।
लोग संगमरमर हुए ,ह्रदय हुए इस्पात,
बर्फ हुई संवेदना, खत्म हुई सब बात।
जिस प्रकार गांव मे लोग एक-दूसरे की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। प्रतिदिन सुबह-शाम वे चौपाल पर एक दूसरे के हाल-चाल अवश्य पूछते हैं ,लेकिन शहरों में तो अधिकांशतः लोग अपने पड़ोसी का नाम तक नहीं जानते। सिर्फ अपने मतलब से मतलब रखते हैं ऐसा प्रतीत होता है जैसे सभी अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए वहां रह रहे हैं।
जहां भी जाता हूं ,वीरान नजर आता है ।
खून में डूबा हुआ ,हर मैदान नजर आता है।
हालांकि केंद्र सरकार गांव के उत्थान के लिए वहां पर हर प्रकार की सहूलियत और साधन उपलब्ध कराने के प्रयास कर रही है ,ताकि ग्रामीण लोग शहरों की तरफ पलायन न करें ।परंतु विकास की दर इतनी धीमी है कि अभी गांव में शहरो जैसा विकास होने में बीसीयों वर्ष लग जाएंगे।
गांव से शहर आने वाले लोग शहरों के आकर्षण के कारण यहां खिंचे चले आते हैं। शहरों की चमक दमक उन्हें यहां आने के लिए बाध्य करती है। फिल्म स्टार को देखने, उनकी झलक पाने के लिए, लोग आतुर होकर शहर की ओर चले आते हैं। यहां आकर उन्हें यहां की स्थिति का एहसास होता है। हालांकि शहरों में कोई भूखा नहीं सोता। खाना तो मिल ही जाता है। किंतु सोने के लिए कोई जगह नहीं मिलती। मजबूरन लोगों को फुटपाथ पर सोना पड़ता है। शहरों की दशा यहां की जनसंख्या के कारण बहुत ही खराब है। ट्रेनों में लोगों की भीड़ कम होने का नाम ही नहीं लेती है। इसी भीड़ के कारण कई लोगों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ता है।
शहरों में लोगों के पलायन से शहरों की दशा अत्यंत खराब हो गई है। दिल्ली शहर इसमें मुख्य है। यहां जनसंख्या अत्यधिक होने से ट्रैफिक प्रदूषण, बीमारियां आदि बहुत बढ़ रही है। इससे पहले कि यहां की हालत विस्फोटक हो जाए, सरकार को कुछ करना होगा।
यह है शहरी जीवन की दशा अथवा दुनिया। जिसे समय रहते सुधारना होगा।
जलते दीपक के प्रकाश में,
अपना जीवन- तिमिर हटाए,
उसकी ज्योतिर्मयी किरणों से,
अपने मन में ज्योति जगाएं।

खेत

खेत
आज राशन की लाइन में खड़े हुए,
ध्यान दुकान पर था लगा हुआ।
बेचैनी बढ़ रही थी,
धूप तेज और तेज हो रही थी।
माथे पर शिकन गहरा रही थी।
तभी राशन वाले ने कहा,
राशन खत्म हो गया।
आज भी कल की तरह,
खाली हाथ जाना होगा,
बच्चों को आज भी,
भूखा ही सो जाना होगा।
चिंता बेचैनी बढ़ रही थी,
अफसोस गहरा रहा था,
मैंने खेत क्यों बेच दिए,
हाय ! मैंने खेत क्यों बेच दिए।



संघर्ष

संघर्ष

यह शहरी जीवन है,
यांत्रिक गतिविधियां,
जहां तनिक भी विश्राम नहीं।
भीतर संघर्षों का कोलाहल,
बाहर अजीब सी शांति है।
भीतर वेदना प्रगाढ़,
बाहर स्मित मुस्कान है।
कुछ उखड़ा हुआ है,
कुछ टूटा हुआ है,
कुछ दरका हुआ है भीतर।
कुछ क्षण पूर्व था यहां,
विचारों का आतंक,
संघर्षों का कोलाहल,
मानसिक अशांति,
अब बिल्कुल सन्नाटा है।
मौन है, निस्तब्धता है,
संवेदनाओं का एहसास
बर्फ सा हो गया है।
मन तो केवल इस्पात है।