हिंदी
मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
हिंदी की महिमा मैं क्या कहूं,
एक सरिता सी व्याख्या है।
जहां जाए, वहां राह बनाएं,
सबके ह्रदय को पुलकाये,
जन जन के ह्रदय में बसती,
ऐसी यह एक अभिलाषा है।
मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
हिंदी का अनुराग मुझे है,
इसकी छवि से प्यार मुझे है।
इसका बढ़ता गौरव,
संपूर्ण विश्व में छाया है।
हर प्रांत, हर देश की,
सबसे शीतल छाया है।
मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
जिसने इसको गले लगाया,
उसने जीवन में नाम कमाया।
भारतेंदु जी ने, नया रूप दिया इसे,
द्विवेदी जी ने परिष्कृत किया इसे,
शुक्ल, प्रसाद के हाथों गढ़ कर,
जीवन एक नवीन हुआ।
मै हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
प्रेमचंद, निराला, महादेवी,
किसकी यहां मैं बात करूं।
हिंदी साहित्य अनमोल धरोहर,
माणिक मोती चुने हुए।
सूक्ष्म स्त्रोत फूट कर यहां,
विस्तृत जलधारा बना।
मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
गांधी, टैगोर ने अपनाकर इसे,
जन-जन में, नवशक्ति, नवप्राण भरा।
नेहरू, सुभाष और भगत सिंह
के भी सर का ताज बना।
देश की आजादी में भी,
हिंदी हिंद की जान बनी।
मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
चाहे कोई जाति,प्रांत हो।
या हो कोई भाषी भी।
सब ने इसे अपनाकर कर ली,
अपने सर की ताजपोशी भी।
मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
हिंदी ने करामात दिखाई,
हिंदुस्तान आजाद हुआ।
एकता, अखंडता का नारा,
हिंदी ही के साथ हुआ।
मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
बीते दिन, बीता वर्ष,
आज भी हिंदी मुकम्मल है।
दिल से दिल को समझने के लिए,
आज भी हमारे पास तो यही संबल है।
मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
कभी-कभी भूल जाते हैं इसे,
भाषावाद की जड़ में,
किंतु ज्येष्ठ कन्या- सी,
सागर सा, ह्रदय लिए,
आज भी मौजूद है हिंदी।
हम सबके बीच है हिंदी।
मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
भूखे फकीर से लेकर,
रेड कार्पेट पर चलने वालों तक।
अपनाती है यह, गले लगाती है यह,
प्यार से सबको, अपना बनाती है यह।
यह हिंद की भाषा है।
यह हिंद की भाषा है।
हिंदी ही मेरी भाषा है।
हिंदी ही मेरी भाषा है।
राजेश्री गुप्ता