शनिवार, 1 मई 2021

बहार आएगी

बहार आएगी,

ए सखी, बहार आएगी।

काली, कुपित निशा,

एक दिन तो ढल जाएगी।

रवि का आगमन तो

अटल सत्य है।

फिर भय, पीड़ा, और उलझन से

क्यों त्रस्त है तू ?

पतझड़ जीवन का हिस्सा है,

जीवन नहीं।

वसंत को तो आना है,

प्रकृति को हंसाना है।

चहुं ओर खुशियां फैलाना है।

फिर शोक, संतृप्त, और दुखी

क्यों है तू ?


माना काले बादल छाए हैं,

तिमिर तांडव मचाए हैं।

पर उजाला तो विजीत होगा

आज नहीं तो कल होगा।

फिर सब्र, शांत और धैर्य के बंधन में

क्यों न है तू ?

सच मान

प्रकृति को जान

प्रकृति हरदम बदलती है,

हर क्षण कहां एक सी रहती है।

यह घोर निराशा, त्रासदी और तकलीफों

का चक्र भी बदलेगा।

सच सखी,

बहार आएगी।

फूल खिलेंगे, उपवन महकेंगे

आशा और विश्वास को मत खोना

यही तुम्हें संबल देंगे

बहारों से तुम्हें मिलने देंगे

बहारों से तुम्हें मिलने देंगे।

                         राजेश्री गुप्ता

 

 

 

 

बुधवार, 4 नवंबर 2020

श्रम का महत्व

                        श्रम का महत्व
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा,
जो जस करहिं तो तस फल चाखा।
यह संसार वास्तव में एक कर्मभूमि है। भगवान कृष्ण ने भी भगवत गीता में 'कर्मण्येवाधिकारस्ते' कहकर कर्म करने का संदेश दिया है।
प्रकृति भी हमें कर्म करने की प्रेरणा देती है। धरती,सूरज, तारे, नक्षत्र सभी निरंतर गतिशील है। पवन निरंतर बहती है। नदिया सतत प्रवाहित होती रहती है।
प्रकृति में प्रत्येक तत्व को जीवन के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ता है। नन्हीं सी चींटी भी परिश्रम करके भोजन का भंडार जमा कर लेती है। शेर के मुख में भी पशु स्वयं प्रवेश नहीं कर पाते, उसे परिश्रम करके अपना शिकार ढूंढना पड़ता है।
श्रम से ही जीवन की गाड़ी चलती है। किसान के श्रम से ही सब का पेट भरता है। मजदूरों के श्रम से ही कल - कारखाने चलते हैं। चालकों के श्रम से ही वाहन चलते हैं। अस्पतालों में डॉक्टर और नर्सों का परिश्रम ही मरीजों को नया जीवन देता है। विद्यार्थी भी श्रम करके ही विद्या और योग्यता प्राप्त करते हैं।  श्रम में लीन रहकर ही वैज्ञानिक नए-नए आविष्कार करते हैं।
श्रम के बल पर ही विज्ञान ने मनुष्य को चांद पर पहुंचाया है। सभ्यता और संस्कृति का विकास श्रम के बल पर ही संभव हुआ है। अमेरिका, रूस,जापान जैसे देश अपने परिश्रम के कारण ही विश्व में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर सके हैं।
वाल्मीकि, वेदव्यास, कालिदास, पाणिनी आदि भी बौद्धिक श्रम से ही महान ग्रंथकार बन सके।पंडित जवाहरलाल नेहरू, श्री लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी जैसे कई नेता अपने श्रम के कारण ही देश के प्रधानमंत्री बन सके। आइंस्टाइन ने श्रम किया और वे विश्व के सबसे महान वैज्ञानिक बन गए। किसी ने सच ही कहा है - "बिना मेहनत के सिर्फ झाड़ियां ही उगती है। "
कल्पना से ही सब कार्य सिद्ध नहीं हो जाते। उसके लिए हमें श्रम करना पड़ता है।अत: श्रम का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। श्रम से ही हमें धन और यश की प्राप्ति होती है। श्रम से ही शारीरिक, मानसिक और आत्मिक विकास होता है। दिन रात मेहनत करने वाले व्यक्ति के स्वास्थ्य और सौंदर्य की वृद्धि होती है।वह निरोगी होकर दीर्घायु को प्राप्त करता है। परिश्रमी व्यक्ति अपने कर्म में लीन रहकर शांति अनुभव करता है। उसमें आत्म संतोष, आत्मवश्वास और आत्मनिर्भरता के गुणों का विकास होता है। जिससे हीनता की भावना समाप्त हो जाती है और वह आत्म गौरव अनुभव करता है।
हर 2 मिनट की शोहरत के पीछे आठ-दस घंटे की कड़ी मेहनत होती है।
धन जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। वह धन भी शारीरिक एवं बौद्धिक श्रम से ही प्राप्त किया जा सकता है।
मनुष्य अपने भाग्य का विधाता स्वयं है। परिश्रम के बल पर ही वह महान से महान लक्ष्य को प्राप्त करके महानता के पथ पर अग्रसर होता चला जाता है। आलसी व कर्म हीन व्यक्ति भाग्य के सहारे बैठा देव- देव पुकारा करता है।
सकल पदारथ है जग माही,
कर्म हीन नर पावत नाही
यह दुख की बात है कि हमारी वर्तमान शिक्षा नीति हमें श्रम से दूर ले जा रही है। आज का युवा वर्ग कम से कम श्रम करके अधिक से अधिक धन कमाना चाहता है। कई बार इसके लिए वह गलत रास्ते भी अख्तियार कर लेता है। जो सचमुच ही हमारे लिए चिंता का विषय है। आज सभी को यह समझने की जरूरत है कि परिश्रम वह चाबी है ,जो किस्मत के दरवाजे खोल देती है। इसलिए परिश्रम करने कीी आवश्यकता है।
परिश्रम वह पारस मणि है, जिसके स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है।
जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता पूरे जन्म के श्रम द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। इससे कम मूल्य पर इसे खरीदा नहीं जा सकता। जीवन में सफलता के फूल श्रम के पौधे पर ही खिलते हैं।
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।
                                           राजेश्री गुप्ता

  

मंगलवार, 3 नवंबर 2020

पेड़

पेड़
आज इस वृक्ष के नीचे बैठकर यह खयाल आया
आज इस वृक्ष के नीचे बैठकर यह ख्याल आया
मेरे पूर्वजों ने इसे न लगाया होता
तो क्या होता ?
इस पेड़ की ठंडी छाया मुझे नहीं मिलती
इस पेड़ के मीठे फल मुझे नहीं मिलते
इस पेड़ से जो अपनापन है
वह मेरे पूर्वजों का आशीर्वाद है
यह पेड़ स्नेह, प्रेम, प्यार से
महकता है
चहकता है
इसको देख कर मैं भी
खुश होती हूं
सोचती हूं
मैं भी एक पेड़ लगाऊंगी
शायद मेरी आगे आनेवाली
कई पीढ़ियां
ऐसा ही लगाव
ऐसा ही अपनापन
पेड़ से महसूस करे
और तब शायद
आज का यह अपनापन
मेरे मन में
पेड़ के प्रति अपनत्व को
दूना कर देता है।
                         राजेश्री गुप्ता

रविवार, 25 अक्तूबर 2020

दशहरा

                         दशहरा

दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दश - हर से हुई है। जिसका शाब्दिक अर्थ है 10 बुराइयों से छुटकारा पाना।
दशहरे का त्यौहार हमारे भारतवर्ष में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। विजय का प्रतीक दशहरा अपना एक खास महत्व रखता है।
दशहरे का त्यौहार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इसे आयुध पूजा या विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है।
दशहरा शक्ति की उपासना का पर्व है। 9 दिन देवी दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है। दुर्गा सप्तशती का घर-घर में पाठ होता है। मां देवी दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा इन 9 दिनों में की जाती है। हवन आदि के द्वारा मां देवी दुर्गा को प्रसन्न किया जाता है। कहते हैं दशहरे के दिन मां देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। इसीलिए दशहरे का त्यौहार बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसके अलावा पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इसी दिन श्री राम जी ने  राक्षस रावण का वध किया था। माता सीता को मुक्त कराया था। इसी कारण दशहरे का त्यौहार बहुत मान्यता रखता है। जगह-जगह इसी दिन रावण का पुतला जलाया जाता है। रावण के साथ- साथ मेघनाथ एवं कुंभकरण का पुतला भी जलाया जाता है।
शक्ति की उपासना का पर्व
दशहरा है धार्मिक त्योहार।
बंगाल में दुर्गा पूजा उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। जगह- जगह पंडालों में दुर्गा की बड़ी-बड़ी मूर्तियां स्थापित की जाती है। विधि विधान से उनका पूजन किया जाता है।
कई जगहों पर दशहरे के अवसर पर मेले भी लगते हैं। मेले में मां देवी दुर्गा के मंदिर के बाहर का वातावरण देखते ही बनता है। इस समय धार्मिक भावना एवं लोगों की आस्था चरम पर होती है।
दशहरे के समय वर्षा समाप्त हो चुकी होती है। नदियों में बहने वाला पानी अपनी गति से बहता है। कृषक लोगों के लिए भी यह समय धान आदि को सहेज कर रखने का होता है।
इस समय कई लोग अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं। वाहन की पूजा करना भी श्रेयस्कर माना जाता है। घरों के बाहर फूलों से तथा आम के पत्तों या अशोक के पत्तों से तोरण बनाकर लगाया जाता है। इस समय घर के बाहर धान का तोरण बनाकर भी लगाया जाता है। कहते हैं इससे घर में हमेशा धनधान्य की समृद्धि होती रहती है।
दशहरे के दिन कई लोग नवीन वाहन, घर या नई चीजें खरीदते हैं। दशहरे का दिन नवीन सौदा करने का दिन होता है। इसे विजय स्वरूप देखा जाता है अतः यह मान्यता है कि इस दिन किया जाने वाला हर कार्य जय देता है।
वास्तव में दशहरा प्रतीक है-
बुराई पर अच्छाई का
असत्य पर सत्य का
नाश पर जय का
अशुभ पर शुभता का
अंधकार पर प्रकाश का
आवश्यकता है हमारे भीतर जो काम, क्रोध, मोह, ईर्ष्या, लालच, मत्सर आदि अनेकों असत भावनाओं का त्याग करने की। जब नकारात्मक भावनाओं को समाप्त किया जाएगा, तब भीतर का रावण अपने आप ही समाप्त हो जाएगा।
अपने भीतर के रावण को जलाएं,
आओ हम दशहरा मनाएं।

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

मीडिया और समाज

           मीडिया और समाज
मीडिया अर्थात माध्यम।
अर्थात समाज में, देश में, संसार में कहीं कुछ भी हो रहा है तो वह हमें मीडिया के माध्यम से पता चलता है। चाहे सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या हो, विश्व में कोरोनावायरस हो, बेहाल अर्थव्यवस्था हो या और भी कुछ।
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका इन तीनों के बाद मीडिया अब एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में नजर आती है।
आधुनिक युग में मीडिया का सामान्य अर्थ समाचार पत्र, पत्रिकाओं, टेलीविजन, रेडियो, इंटरनेट, इलेक्ट्रॉनिक्स माध्यम , प्रिंटिंग प्रेस आदि से लिया जाता है। देश को आगे बढ़ाने में, विकास के मार्ग पर ले जाने में मीडिया का बड़ा भारी योगदान होता है।
मीडिया अगर सकारात्मक भूमिका अदा करें तो किसी भी व्यक्ति, संस्था, समूह और देश को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक रूप से समृद्ध बनाया जा सकता है।
मीडिया समाज के विभिन्न वर्गों सत्ता केंद्रों, व्यक्तियों और संस्थाओं के बीच पुल का कार्य करता है। आज जब इसकी उपयोगिता, महत्व एवं भूमिका निरंतर बढ़ती जा रही है ऐसे में इनकी समाज के प्रति जवाबदेही को नकारा नहीं जा सकता।
किंतु दुर्भाग्य है कि अंग्रेजों के शासन काल में जिस प्रिंट मीडिया ने लोगों में जन जागृति फैलाई, चेतना जगाई, अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाने के लिए विवश किया। वही आज अपने कर्म से विमुख होता जा रहा है।
केवल मनोरंजन ही न कवि का ,
कर्म होना चाहिए।
उसमें उचित उपदेश का भी, 
मर्म होना चाहिए।
बढ़ती टीआरपी के लिए मीडिया केवल सनसनी फैलाने का एकमात्र स्त्रोत बन कर रह गई है। अब तो सही खबरें पहुंचाना लक्ष्य ना होकर, चटपटी मसालेदार खबरें पहुंचाना इनका लक्ष्य बनकर रह गया है। पहले समाचार समाज को सही और सटीक सूचनाएं उपलब्ध करके देते थे। किंतु अब सनसनी फैलाना इनका उद्देश्य हो गया है। यही कारण है कि बरसात की वजह से यदि बाढ़ जैसी परिस्थिति उत्पन्न न हो गई हो तो भी पुरानी तस्वीरें, वीडियो आदि दिखाकर जनता को दिग्भ्रमित करते हैं। इसलिए जनता का भी विश्वास इन पर से अब उठने लगा है।
लोग संगमरमर हुए,
ह्रदय हुए इस्पात,
बर्फ हुई संवेदना,
खत्म हुई सब बात।
मीडिया को, समाज को, गुमराह न करके अपने उत्तरदायित्व को समझना होगा। अपनी जिम्मेदारी का वहन करना होगा।
जलते दीपक के प्रकाश में,
अपना जीवन- तिमिर हटाए।
ऐसा नहीं है कि मीडिया द्वारा जन जागृति का कार्य नहीं किया जाता। पोलियो के लिए दो बूंद जैसे कई कार्यक्रम दिखाए जाते हैं। ऐड्स, टीबी जैसे कई रोगों के प्रति भी जागरूकता फैलाई जाती है। वोट डालना, बाल मजदूरी पर रोक, धूम्रपान के खतरों से अवगत कराना आदि कार्य मीडिया द्वारा सफलतापूर्वक किया जाता है।
भ्रष्टाचारियों पर कड़ी नजर रख, स्टिंग ऑपरेशन करके सच को जनता के सामने लाया जाता है। कई प्रकार के भ्रष्टाचार केवल मीडिया के वजह से आम जनता के सामने आए हैं।

मीडिया एक समग्र तंत्र है। इस तंत्र में अपारशक्ति है।
इस शक्ति का यदि सही उपयोग किया जाए तो समाज कल्याण के मार्ग पर अग्रसर होगा।
 शक्ति का है स्त्रोत मीडिया,
अपने स्वार्थ को तज कर,
समाज का उद्धार कर,
अपने देश का नाम कर।।




रविवार, 13 सितंबर 2020

हिंदी

हिंदी

मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
हिंदी की महिमा मैं क्या कहूं,
एक सरिता सी व्याख्या है।
जहां जाए, वहां राह बनाएं,
सबके ह्रदय को पुलकाये,
जन जन के ह्रदय में बसती,
ऐसी यह एक अभिलाषा है।
मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
हिंदी का अनुराग मुझे है,
इसकी छवि से प्यार मुझे है।
इसका बढ़ता गौरव,
संपूर्ण विश्व में छाया है।
हर प्रांत, हर देश की,
सबसे शीतल छाया है।
मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
जिसने इसको गले लगाया,
उसने जीवन में नाम कमाया।
भारतेंदु जी ने, नया रूप दिया इसे,
द्विवेदी जी ने परिष्कृत किया इसे,
शुक्ल, प्रसाद के हाथों गढ़ कर,
जीवन एक नवीन हुआ।
मै हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
प्रेमचंद, निराला, महादेवी,
किसकी यहां मैं बात करूं।
हिंदी साहित्य अनमोल धरोहर,
माणिक मोती चुने हुए।
सूक्ष्म स्त्रोत फूट कर यहां,
विस्तृत जलधारा बना।
मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
गांधी, टैगोर ने अपनाकर इसे,
जन-जन में, नवशक्ति, नवप्राण भरा।
नेहरू, सुभाष और भगत सिंह
के भी सर का ताज बना।
देश की आजादी में भी,
हिंदी हिंद की जान बनी।
मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
चाहे कोई जाति,प्रांत हो।
या हो कोई भाषी भी।
सब ने इसे अपनाकर कर ली,
अपने सर की ताजपोशी भी।
मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
हिंदी ने करामात दिखाई,
हिंदुस्तान आजाद हुआ।
एकता, अखंडता का नारा,
हिंदी ही के साथ हुआ।


मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
बीते दिन, बीता वर्ष,
आज भी हिंदी मुकम्मल है।
दिल से दिल को समझने के लिए,
आज भी हमारे पास तो यही संबल है।
मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
कभी-कभी भूल जाते हैं इसे,
भाषावाद की जड़ में,
किंतु ज्येष्ठ कन्या- सी,
सागर सा, ह्रदय लिए,
आज भी मौजूद है हिंदी।
हम सबके बीच है हिंदी।
मैं हिंद की वासी हूं, हिंदी मेरी भाषा है।
भूखे फकीर से लेकर,
रेड कार्पेट पर चलने वालों तक।
अपनाती है यह, गले लगाती है यह,
प्यार से सबको, अपना बनाती है यह।
यह हिंद की भाषा है।
यह हिंद की भाषा है।
हिंदी ही मेरी भाषा है।
हिंदी ही मेरी भाषा है।
                           राजेश्री गुप्ता 





सोमवार, 17 अगस्त 2020

प्रेम

प्रेम

प्रेम दो वर्णों का लफ्ज है।
इसमें छिपा बड़ा रोचक मर्म है।
प्रेम से प्रेम को पाया जा सकता है।
प्रेम से दुनिया को अपना बनाया जा सकता है।
प्रेम ने मेरी दुनिया ही बदल दी,
जब से प्रेम हुआ मुझे,
सब मुश्किल ही हल कर दी।
हिंदू ,मुस्लिम, सिख , ईसाई
सभी प्यारे लगते हैं।
ना कोई बड़ा, ना कोई छोटा,
ना कोई अमीर ,ना कोई गरीब लगता है।
बस प्यार से देखो तो हर इंसान,
करीब का कोई अपना लगता है।
प्रेम सिखलाता है हमको,
नफरत को भुलाकर व्यक्ति को जीतना।
प्रेम सिखलाता है हमको,
सभी को अपना बनाकर रखना।
ये प्रेम शब्द कितना ताकतवर है।
काश, ये मेरे देश का हर बंदा जान जाए।
तो दूरियों का यह समंदर,
हर एक को कितना,
नजदीक नजर आए।
जाति- पांति की दीवार पाटकर,
हम सब केवल,
प्रेममय हो जाए।
राजेश्री गुप्ता