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गुरुवार, 12 जनवरी 2023
मकर संक्रांति
बुधवार, 28 दिसंबर 2022
चांद जरा सा घटता रहा
चांद जरा सा घटता रहा
चांद जरा सा घटता रहा ,
अपना सफर तय करता रहा।
रात के अंधेरों में,
अपनी चांदनी के साथ,
बेफिक्र होकर बिखरता रहा।
चांद जरा सा घटता रहा।
चांद जरा सा घटता रहा,
हर पल अपना कर्म करता रहा।
दुनिया को हरदम,
अपने साथ,
मुस्कुराने की प्रेरणा देता रहा।
चांद जरा सा घटता रहा।
चांद जरा सा घटता रहा,
जीवन का अर्थ समझाता रहा।
उसे पता है,
एक दिन पूर्णिमा जरूर आएगी,
तब वह अपनी पूर्णता को पाएगा,
फिर आज वह फिक्र क्यों करें ?
अपने घटने के गम में क्यों मरे ?
चांद जरा सा घटता रहा ।
राजेश्री गुप्ता
२८/१२/२०२२
सोमवार, 26 दिसंबर 2022
संस्मरण
संस्मरण लेखन
नोट्स
राजेश्री गुप्ता
बात उन दिनों की है जब मैं कॉलेज में प्रथम वर्ष में थी।
स्कूल छूटा स्कूल के दोस्त भी छुटे। अब नया परिवेश, नया वातावरण, नए शिक्षक और नए
संगीसाथी। क्योंकि जल्दी से दोस्ती करने की मेरी आदत भी नहीं और थोड़ा अंतर्मुखी
व्यक्तित्व होने के कारण मेरा उस कॉलेज में कोई मित्र भी नहीं था। कुछ महीने यूं
ही बीत गए। धीरे-धीरे अब अपनी कक्षा में कुछ चेहरों से मैं परिचित होती चली गई।
उनमें से एक तो मेरे साथ मेरे बेंच पर ही बैठती थी। धीरे-धीरे जान-पहचान बढ़ी और हममें
मित्रता का भाव अपनी जड़े जमाने लगा। कॉलेज की कक्षाएं अटेंड करना फिर कैंटीन में
साथ में लंच लेना, हमारा दैनिक कार्यक्रम था।
बचपन से ही पढ़ाई
को लेकर मैं ज्यादा संजीदा थी। अतः कॉलेज छूटने के बाद अक्सर लाइब्रेरी में एक घंटा
बिताना मेरी आदत थी।
रोज जो पढ़ाया जाता,
उसे पढ़ना। उस पर नोट्स बनाना। यह सब पढ़ाई के साथ-साथ मैं रोज करती इसलिए जितना
पढ़ाया जाता, उसके नोट्स मेरे पास तैयार रहते ।
धीरे-धीरे
परीक्षा का दौर भी आ पहुंचा। मेरी बगल में बैठने वाली मेरी सखी ने बताया कि उसने
अभी तक तो कुछ भी तैयारी नहीं की है और वह मुझसे मेरे नोट्स मांगने लगी। मैंने भी
मित्रता का धर्म निभाते हुए, अपने नोट्स उसके हवाले किए।
कल आ कर देती
हूं, ऐसा बोलकर, वह मेरे नोट्स ले गई। और उसके बाद कई दिनों तक वह कॉलेज में नहीं
आई। मेरा दिल, हर दिन बैठा जाता था। अब नोट्स नहीं तो मैं कैसे पढ़ूंगी ? यह यक्ष
प्रश्न मेरे सामने उपस्थित था। घबराहट के मारे नींद आंखों से कोसों दूर थी।
परीक्षा के दिन समीप आ रहे थे। मेरी दोस्त का कुछ अता पता नहीं था। मैंने ना तो
उसका फोन नंबर लिया था और ना ही मुझे पता था कि वह कहां रहती है ? अतः मेरा उससे
संपर्क भी नहीं हो सकता था।
अब केवल ईश्वर का
ही सहारा था। मैं रोज ईश्वर से मनाती की वह कॉलेज आ जाए, पर हर दिन उसका चेहरा
कॉलेज में, कक्षा में दिखाई ही नहीं देता था। गुस्सा, बेचैनी,
परेशानी दिन पर दिन बढ़ रही थी कि अचानक एक दिन परीक्षा से ठीक 2 दिन पहले वह मेरे
घर पर आई मेरे नोट्स लेकर।
उसे देखकर मेरी आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी।
इतने दिन का गुस्सा, बेचैनी सब एक साथ जैसे
फूट पड़े हो।
घर आकर ही उसने मुझे बताया कि उसके पिता की ट्रेन से गिरकर
मृत्यु हो गई थी इस वजह से वह कॉलेज नहीं आ पाई।
पिता के चले जाने का गम बहुत बड़ा था। उसके आगे मेरे नोट्स
का उसके पास रह जाना मुझे बहुत छोटा मालूम हुआ।
पर इतना बड़ा दुख झेलने पर भी, उसे मेरे
नोट्स का ख्याल रहा। वह मुझे खोजती हुई, मेरे घर तक पहुंची थी। यह बहुत बड़ी बात
थी।
कई बार कितनी ही बातों से हम बेखबर रहते हैं और अपने दुख को
बहुत बड़ा और बहुत बड़ा समझते हैं। पर जब वास्तविकता हमारे सामने आती है तो हमें
अपना दुख कितना छोटा जान पड़ता है।
आज वह मेरी सखी, मेरे जीवन की सबसे अभिन्न दोस्त बन गई है।
हमारे बीच हुई यह घटना मुझे हर पल याद दिलाती है कि किसी के बारे में बिना जाने
अपनी राय नहीं बना लेनी चाहिए। हमें नहीं मालूम कि अगला व्यक्ति क्या झेल रहा है ?
गुरुवार, 6 अक्तूबर 2022
भाषा एक वरदान Bhasha ek vardan
बुधवार, 21 सितंबर 2022
शहरी जीवन
शनिवार, 1 मई 2021
बहार आएगी
बहार आएगी,
ए सखी, बहार आएगी।
काली, कुपित निशा,
एक दिन तो ढल जाएगी।
रवि का आगमन तो
अटल सत्य है।
फिर भय, पीड़ा, और उलझन से
क्यों त्रस्त है तू ?
पतझड़ जीवन का हिस्सा है,
जीवन नहीं।
वसंत को तो आना है,
प्रकृति को हंसाना है।
चहुं ओर खुशियां फैलाना है।
फिर शोक, संतृप्त, और दुखी
क्यों है तू ?
माना काले बादल छाए हैं,
तिमिर तांडव मचाए हैं।
पर उजाला तो विजीत होगा
आज नहीं तो कल होगा।
फिर सब्र, शांत और धैर्य के बंधन में
क्यों न है तू ?
सच मान
प्रकृति को जान
प्रकृति हरदम बदलती है,
हर क्षण कहां एक सी रहती है।
यह घोर निराशा, त्रासदी और तकलीफों
का चक्र भी बदलेगा।
सच सखी,
बहार आएगी।
फूल खिलेंगे, उपवन महकेंगे
आशा और विश्वास को मत खोना
यही तुम्हें संबल देंगे
बहारों से तुम्हें मिलने देंगे
बहारों से तुम्हें मिलने देंगे।
राजेश्री गुप्ता