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मंगलवार, 14 मार्च 2023
व्यक्ति
साया
शुक्रवार, 3 मार्च 2023
संघर्ष
गुरुवार, 26 जनवरी 2023
गणतंत्र दिवस
गणतंत्र दिवस
गणतंत्र दिवस
अरुण यह मधुमय देश हमारा,
जहां पहुंच अनजान क्षितिज को,
मिलता एक सहारा।
सचमुच भारत देश मधुमय ही तो है, जहां सारी जातियां, धर्म,
संप्रदाय सिमटकर एक हो गए हैं। विविधता में एकता हमारे देश की पहचान है। हमारा
लोकतंत्र हमें संपूर्ण विश्व में सबसे अलग बनाता है। इसीलिए –
आओ, लोकतंत्र का पर्व मनाए,
26 जनवरी आई है,
गणतंत्र दिवस मनाए।
हमारे यहां स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस दो बड़े
राष्ट्रीय पर्व है। इन दोनों पर्वों को हम सभी भारतीय बेहद खुशी, हर्षोल्लास, उमंग
और उत्साह के साथ मनाते हैं। साथ ही हम अपने इतिहास पर दृष्टि डालते हुए उन वीरों
को स्मरण करते हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति में अपने प्राणों का बलिदान
दिया और हमारे उज्जवल भविष्य के लिए मार्ग बनाया।
गणतंत्र का अर्थ है जन द्वारा की हुई व्यवस्था। भारत में
ऐसे शासन की व्यवस्था हुई, जिसमें देश के विभिन्न दलों, वर्गों एवं जातियों के
प्रतिनिधि मिलकर शासन चलाते हैं इसलिए भारत की शासन पद्धति को गणतंत्र की संज्ञा
दी गई और इसे हम गणतंत्र दिवस के नाम से संबोधित करते हैं।
26 जनवरी 1950 को भारत एक गणतंत्र देश बना और इसका अपना
संविधान लागू हुआ। लेकिन गणतंत्र दिवस की भी अपनी एक कहानी है इसका इतिहास सन 1929
के कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन से प्रारंभ हुआ। इस अधिवेशन में नेहरू जी को अध्यक्ष
चुना गया थगया नेहरू जी की अध्यक्षता में
कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति का प्रस्ताव पारित किया। इसी दिन रात के
12:00 बजे, रावी नदी के तट पर नेहरू जी ने स्वतंत्रता का झंडा फहराया और देश को
संबोधित करते हुए कहा हम पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने की घोषणा करते हैं। यह दिन
था 26 जनवरी का। इसी दिन सभी ने एक स्वर में भारत माता को गुलामी की जंजीरों से
मुक्त करने की प्रतिज्ञा की और इस प्रकार यह दिन हमारे लिए अविस्मरणीय बन गया।
इसके पश्चात भारत स्वतंत्र हुआ 15 अगस्त 1947 को। भारत स्वतंत्र तो हो गया पर इसे
गणतंत्र बनना बाकी था, अतः देश के संविधान निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई जो 26
जनवरी 1950 को पूरी हुई। इसी दिन भारत एक सर्व प्रभुता संपन्न लोकतंत्र गणराज्य बना
। इस दिन देश का शासन पूर्ण रूप से देशवासियों के हाथों में आ गया। इसी दिन घोषित
किया गया कि देश की सर्वोच्च सत्ता जिस व्यक्ति के अधीन रहेगी उसे राष्ट्रपति कहा जाएगा।
पहले राष्ट्रपति की घोषणा भी इसी दिन तारीख पर की गई।
26 जनवरी के दिन हम
सभी भारतीय लोकतंत्र को एक उत्सव के रूप में मनाते है। तथा अपनी स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाए रखने
के लिए प्रतिज्ञा भी करते हैं।
इस दिन देश की राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट पर खास परेड
का आयोजन किया जाता है। आम नागरिक भी इसमें शामिल होते हैं। राजपथ पर कई तरह के
कार्यक्रम देखने के लिए मिलते हैं। तीनों सेनाये राष्ट्रपति और राष्ट्रीय ध्वज को सलामी देते हुए
राजपथ से होकर निकलती हैं। राज्य और सरकारी विभागों की झांकियां भी हमें देखने के लिए
मिलती हैं।
इस दिन सार्वजनिक अवकाश होता है । सभी दफ्तर, स्कूल, कॉलेज बंद होते हैं। जगह जगह पर विशेष कार्यक्रम और
ध्वजारोहण होता है। पूरे राष्ट्र में लोगों का उत्साह देखते ही बनता है।
गणतंत्र दिवस भारतीयों को उनके स्वतंत्रता संग्राम व देश के
प्रति कर्तव्यों का स्मरण दिलाता है और प्रेरणा देता है कि हम कर्तव्यनिष्ठा से
देश को प्रगति, उन्नति व समृद्धि के पथ पर अग्रसर करें।
यूनान, मिस्र, रोम सब मिट गए जहां से,
अब तक मगर है, बाकी नामोनिशान हमारा,
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन, दौर ये जहां हमारा।।
गुरुवार, 12 जनवरी 2023
मकर संक्रांति
बुधवार, 28 दिसंबर 2022
चांद जरा सा घटता रहा
चांद जरा सा घटता रहा
चांद जरा सा घटता रहा ,
अपना सफर तय करता रहा।
रात के अंधेरों में,
अपनी चांदनी के साथ,
बेफिक्र होकर बिखरता रहा।
चांद जरा सा घटता रहा।
चांद जरा सा घटता रहा,
हर पल अपना कर्म करता रहा।
दुनिया को हरदम,
अपने साथ,
मुस्कुराने की प्रेरणा देता रहा।
चांद जरा सा घटता रहा।
चांद जरा सा घटता रहा,
जीवन का अर्थ समझाता रहा।
उसे पता है,
एक दिन पूर्णिमा जरूर आएगी,
तब वह अपनी पूर्णता को पाएगा,
फिर आज वह फिक्र क्यों करें ?
अपने घटने के गम में क्यों मरे ?
चांद जरा सा घटता रहा ।
राजेश्री गुप्ता
२८/१२/२०२२
सोमवार, 26 दिसंबर 2022
संस्मरण
संस्मरण लेखन
नोट्स
राजेश्री गुप्ता
बात उन दिनों की है जब मैं कॉलेज में प्रथम वर्ष में थी।
स्कूल छूटा स्कूल के दोस्त भी छुटे। अब नया परिवेश, नया वातावरण, नए शिक्षक और नए
संगीसाथी। क्योंकि जल्दी से दोस्ती करने की मेरी आदत भी नहीं और थोड़ा अंतर्मुखी
व्यक्तित्व होने के कारण मेरा उस कॉलेज में कोई मित्र भी नहीं था। कुछ महीने यूं
ही बीत गए। धीरे-धीरे अब अपनी कक्षा में कुछ चेहरों से मैं परिचित होती चली गई।
उनमें से एक तो मेरे साथ मेरे बेंच पर ही बैठती थी। धीरे-धीरे जान-पहचान बढ़ी और हममें
मित्रता का भाव अपनी जड़े जमाने लगा। कॉलेज की कक्षाएं अटेंड करना फिर कैंटीन में
साथ में लंच लेना, हमारा दैनिक कार्यक्रम था।
बचपन से ही पढ़ाई
को लेकर मैं ज्यादा संजीदा थी। अतः कॉलेज छूटने के बाद अक्सर लाइब्रेरी में एक घंटा
बिताना मेरी आदत थी।
रोज जो पढ़ाया जाता,
उसे पढ़ना। उस पर नोट्स बनाना। यह सब पढ़ाई के साथ-साथ मैं रोज करती इसलिए जितना
पढ़ाया जाता, उसके नोट्स मेरे पास तैयार रहते ।
धीरे-धीरे
परीक्षा का दौर भी आ पहुंचा। मेरी बगल में बैठने वाली मेरी सखी ने बताया कि उसने
अभी तक तो कुछ भी तैयारी नहीं की है और वह मुझसे मेरे नोट्स मांगने लगी। मैंने भी
मित्रता का धर्म निभाते हुए, अपने नोट्स उसके हवाले किए।
कल आ कर देती
हूं, ऐसा बोलकर, वह मेरे नोट्स ले गई। और उसके बाद कई दिनों तक वह कॉलेज में नहीं
आई। मेरा दिल, हर दिन बैठा जाता था। अब नोट्स नहीं तो मैं कैसे पढ़ूंगी ? यह यक्ष
प्रश्न मेरे सामने उपस्थित था। घबराहट के मारे नींद आंखों से कोसों दूर थी।
परीक्षा के दिन समीप आ रहे थे। मेरी दोस्त का कुछ अता पता नहीं था। मैंने ना तो
उसका फोन नंबर लिया था और ना ही मुझे पता था कि वह कहां रहती है ? अतः मेरा उससे
संपर्क भी नहीं हो सकता था।
अब केवल ईश्वर का
ही सहारा था। मैं रोज ईश्वर से मनाती की वह कॉलेज आ जाए, पर हर दिन उसका चेहरा
कॉलेज में, कक्षा में दिखाई ही नहीं देता था। गुस्सा, बेचैनी,
परेशानी दिन पर दिन बढ़ रही थी कि अचानक एक दिन परीक्षा से ठीक 2 दिन पहले वह मेरे
घर पर आई मेरे नोट्स लेकर।
उसे देखकर मेरी आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी।
इतने दिन का गुस्सा, बेचैनी सब एक साथ जैसे
फूट पड़े हो।
घर आकर ही उसने मुझे बताया कि उसके पिता की ट्रेन से गिरकर
मृत्यु हो गई थी इस वजह से वह कॉलेज नहीं आ पाई।
पिता के चले जाने का गम बहुत बड़ा था। उसके आगे मेरे नोट्स
का उसके पास रह जाना मुझे बहुत छोटा मालूम हुआ।
पर इतना बड़ा दुख झेलने पर भी, उसे मेरे
नोट्स का ख्याल रहा। वह मुझे खोजती हुई, मेरे घर तक पहुंची थी। यह बहुत बड़ी बात
थी।
कई बार कितनी ही बातों से हम बेखबर रहते हैं और अपने दुख को
बहुत बड़ा और बहुत बड़ा समझते हैं। पर जब वास्तविकता हमारे सामने आती है तो हमें
अपना दुख कितना छोटा जान पड़ता है।
आज वह मेरी सखी, मेरे जीवन की सबसे अभिन्न दोस्त बन गई है।
हमारे बीच हुई यह घटना मुझे हर पल याद दिलाती है कि किसी के बारे में बिना जाने
अपनी राय नहीं बना लेनी चाहिए। हमें नहीं मालूम कि अगला व्यक्ति क्या झेल रहा है ?